Search This Blog

Saturday 21 January 2012

रिश्वत को क़ानूनी मान्यता ?

देश में भ्रष्टाचार पर अंकुश कैसे लगे। क्या आपके पास इसका जवाब है। अगर है तो हमें सुझाएं। हालांकि इसको लेकर कोई आंदोलन खडी करने की बात कर रहा तो कोई कुछ और। लेकिन इस सब के बीच प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के प्रमुख आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु का लिखा एक लेख गौर करने वाला है। उन्होंने अपने लेख में सुझाव दिया है कि अपना काम करवाने के बदले रिश्वत देने वाले को अपराधी नहीं माना जाना चाहिए। रिश्वत देने वाले की बजाए रिश्वत लेने वाले को ही अपराधी ठहराया जाना चाहिए।
सवाल उठता है कि क्या प्रधानमंत्री के सलाहकार का ये सुझाव भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने के लिए है या फिर अंकुश लगाने के लिए है। एक नजर में तो कहीं से भी इस बयान को नकेल कसने वाला नहीं कहा जा सकता पर यहां यह भी बात गौर करने वाली है कि बयान देने वाला कोई राजनेता नहीं है। कुछ सोच-समझकर ही उन्होंने सुझाव दिये होंगे। राजनीतिक पार्टियों के नेताओं की तरह नफा-नुकसान का आकलन कर तो कम से कम उन्होंने इसका जिक्र नहीं किया है।
मुझे भी लगता है कि सरकार को ये नियम बनाना चाहिए कि अगर कोई व्यक्ति अपना काम जल्दी करवाना चाहता है तो उससे कुछ अतिरिक्त शुल्क लिया जाना चाहिए। साथ ही ये वक़्त भी दिया जाना चाहिए कि किस दिन आपका काम हो जाएगा। ये अतिरिक्त शुल्क सरकार के खजाने में जाना चाहिए और देश के विकास में उसका इस्तेमाल होना चाहिए। क्योंकि आजकल लोगों को अपना काम करवाने की हडबडी होती है। लोग रिश्वत देकर अपना काम करवा लेना चाहते हैं। अच्छा ये ही हो कि इस बारे में नियम ही बना दिया जाए ताकि अतिरिक्त शुल्क बिचौलिये के पास नहीं बल्कि सरकार के खजाने में पहुंचे।
हालांकि रिश्वत लेना और देना दोनों अपराध है और तत्काल रेलवे आरक्षण की तर्ज पर अगर यह व्यवस्था लागू कर दी जाए तो इस सवाल पर ही विराम लग जाएगा कि रिश्वत देने वाला या फिर लेने वाला अपराधी है। कोई अपराधी नहीं होगा और काम भी होगा, सरकारी खजाना भी बढेगा। हालांकि द हिंदू अख़बार के वरिष्ठ संपादक पी. साईनाथ ने प्रधानमंत्री के सलाहकार की टिप्पणी पर कडी आपत्ति व्यक्त की है। उनके मुताबिक यह बयान भ्रष्टाचार को लाइसेंस देने जैसा है। उन्होंने सवाल उठाया है कि अगर मोबाईल कंपनियाँ दावा करें कि उन्हें लाइसेंस लेने के लिए रिश्वत देने पर मजबूर किया गया तो क्या उन्हें अपराध मुक्त किया जा सकता है?
उधर भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी का कहना है कि हम लाख कोशिश कर लें लेकिन जबतक नीतियां सही नहीं होंगी कुछ नहीं हो सकता। सरकार की ढुलमुल नीति की वजह से हम घोटालेबाजों से घिर गये हैं।
आडवाणी ने कहा कि केंद्र सरकार ने भ्रष्टाचार के मामलों को कभी एक बार में स्वीकार नहीं किया। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में देशव्यापी दबाव बनने के बाद जेपीसी की मांग स्वीकार की। इसके अलावा भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे ने जो मुहिम छेड़ी है, उसको भी जब देशव्यापी समर्थन मिला तब सरकार लोकपाल विधेयक के लिए तैयार हुई। आडवाणी ने विदेशों के बैंकों में जमा काले धन की वापसी के मुद्दे पर कहा कि इसके लिए कानून बनाने की आवश्यकता नहीं है। देश में पर्याप्त कानून है। इसके लिए सरकार को ठोस कदम उठाए जाने की जरूरत है। राष्ट्रमंडल खेल घोटाला, 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला और आदर्श घोटाला के आरोपियों को सजा मिलनी चाहिए।

1 comment: