Search This Blog

Saturday, 21 January 2012

बांग्लादेश से आ रही संदिग्धों की खेप


सीमा पर चीनी सैनिकों की बढती गतिविधियों के बीच एक और चौंकाने वाली खबर। यह खबर पडोसी देश बांग्लादेश से है। वहां से भारत में संदिग्धों की खेप पहुंचाने का काम एक बार फिर धडल्ले से शुरू हो गया है। इन्हें बडे शहरों में नहीं बल्कि पौराणिक धार्मिक स्थलों सहित छोटे शहरों में खपाया जा रहा है। और इसे अंजाम देने में मदद कर रहे हैं सीमा पर मानव तस्करी करने वाले दलाल।
यूं अगर देखा जाए तो बांग्लादेशी घुसपैठियों की समस्या कोई नयी समस्या नहीं है। यह इस देश के गठन (1971) के बाद से ही शुरू हो गयी थी लेकिन हाल के दिनों में इनका तरीका बदला है। नजर पर न चढे इसके लिए बडी खेप की बजाय छोटी-छोटी खेप (50-50) का सहारा लिया जा रहा है। इसके अलावा पौराणिक धार्मिक स्थलों सहित छोटे शहरों तक इन्हें पहुंचाया जा रहा है। हाल के दिनों में मथुरा, व्रिंदावन, गोवर्धन, वाराणसी
में इन्हें काफी संख्या में देखा गया है। ये सब यहां कबाड का काम करते है और बांग्ला भाषी होने का की वजह से ये खुद को पश्चिम बंगाल के बताते हैं लेकिन सच्चाई इससे इतर है। अपनी बात को पुष्ट करने के लिए इनके पास पहचान पत्र तक होता है और यह सब इंतजाम देश (भारत) के भीतर सक्रिय दलाल करते है। यह सब कुछ बडे ही सुनियोजित तरीके से हो रहा है। सीमा व देश (भारत) के भीतर सक्रिय दलाल आपस में मिलकर इसे अंजाम जा रहे हैं।
सीमा पर सक्रिय इन दलालों का नेटवर्क काफी तगडा है। ये भारत स्थित दलालों से लगातार संपर्क में हैं और सिग्नल मिलते ही ये खेप की सूची उन तक पहुंचा दी जाती है। उसके बाद सूची के नाम के आधार पर पश्चिम बंगाल का पहचान पत्र बनवाया जाता है ताकि नागरिकता को लेकर सवाल न खडा किया जा सके। पहचान पत्र तैयार होते ही सीमा पर सक्रिय दलाल से खेप की आपूर्ति के लिए कहा जाता है। जानकारी के मुताबिक सीमा पर मानव तस्करी करने वाले दलाल इनलोगों को तीन से पांच हजार में भारत के जलालों को हस्तांतरित कर देते हैं। इतनी ही रकम भारतीय सीमा व बांग्लादेश की सीमा पर तैनात सुरक्षाकर्मियों द्वारा ली जाती है और लगभग इसी कीमत में भारतीय दलाल पूरे ग्रुप का सौदा कर डालते हैं।
इन्हें भारत के विभिन्न शहरों में खपाने के बाद स्थानीय स्तर पर ये संगठन तक बना लेते हैं ताकि जरूरत पडने पर विरोध भी किया जा सके। कल ही जिस तरह से रायपुर के माना बस्ती में बांग्लादेशियों ने जमकर हंगामा किया उससे उनके संगठन की मजबूती का पता चल गया। पुलिस थाने तक का का घेराव किया। दीवार पर लिखे गए आपत्तिजनक नारों से ये बिफर पडे थे। पुलिस के हस्तक्षेप के बाद मामला शांत हुआ। अज्ञात आरोपियों के खिलाफ अपराध कायम किया गया। गया। नारे में उन्हें माना छोड़कर जाने की नसीहत दी गई थी।
यह एक बानंगी है लेकिन हकीकत यही है कि एक बार आ जाने के बाद इन्हें दोबारा वापस भेजना काफी मुश्किल भरा होता है।

1 comment:

  1. smart outsourcing solutions is the best outsourcing training
    in Dhaka, if you start outsourcing please
    visit us: Video Editing training

    ReplyDelete