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Thursday 19 January 2012

...कहीं तेलगी वाला हाल न हो जाए हसन अली का

क्या हसन अली बीमार है? या फिर बीमारी का बहाना कर रहा है। उसके वकील की मानें तो उसे लकवा (पक्षाघात) मार दिया है। पर जेल प्रशासन इसे अफवाह बताकर खारिज कर रहा है। सच्चाई क्या है यह तो सही जांच से ही पता चलेगा लेकिन इस सब के बीच इससे जुड़ी कुछ जानकारियां चौंकाने वाली हैं। मसलन उसे अपने किये पर पछतावा है। वह रोज-रोज की सुनवाई से आजिज आ चुका है। वह सब कुछ बताने को तैयार है। हालांकि उसका वकील ऐसा करने से मना कर रहा है। लेकिन इसके बावजूद वह खुद को रोक नहीं पा रहा है। पुणे जेल सूत्रों के मुताबिक हसन अली खुलासा करने के लिए बेताब है।

वह अपने को बिल्कुल अकेला महसूस कर रहा है। सिर पर से बोझ हल्का करने की बात उसने करनी शुरू कर दी है। उसने इस बाबत धमकी भी दे दी है। कहते हैं कि इसके बाद से ही उसके आकाओं (सफेदपोश) की परेशानी बढ़ गयी है। वे लगातार उसके पास धैर्य न खोने का मैसेज भिजवा रहे हैं। उससे कहा जा रहा है कि सब्र रखें समय के साथ सब कुछ ठीक-ठाक हो जाएगा। कहते हैं बीमारी के आधार पर जमानत की बात हसन के आकाओं की सलाह पर ही किया गया है। इसे वकील के जरिये पहले फ्लोट किया गया है। याद रहे कि कुछ दिन पहले भी उसे हाईकोर्ट से जमानत मिल गयी थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी आपत्ति के साथ इस पर रोक लगा दी थी। कहा जा रहा है कि नोट के बदले वोट मामले में गिरफ्तार राज्यसभा सांसद अमर सिंह की बीमारी के आधार पर हुई रिहाई के बाद ही हसन के आकाओं ने उसकी बीमारी की बात वकील के जरिये उठायी है। कोशिश जारी है और उसमें सफलता मिल गयी तो ठीक नहीं तो एक राजनीतिक भूचाल के लिए तैयार रहें। हालांकि इसके साथ-साथ एक बात की आशंका भी व्यक्त की जा रही है। कहा जा रहा है कि कहीं तेलगी वाला हश्र न हो जाए हसन अली का।

शायद आपको याद हो नकली स्टांप पेपर घोटाले के मुख्य अभियुक्त अब्दुल करीम तेलगी का नाम। कोई बहुत पहले का नहीं बल्कि एक दशक (2001) पुराना मामला है। तब 43 हजार करोड़ रुपये से अधिक के फर्जी स्‍टॉम्‍प घोटाले को लेकर खूब बावेला मचा था। तेलगी ने गिरफ्तारी के बाद कइयों की पोल खोली भी थी, लेकिन उनका कुछ नहीं बिगड़ा। हां, तेलगी को जरूरत जेल की हवा खानी पड़ रही है। अब ऐसा ही कुछ ब्लैक मनी के मामले में गिरफ्तार हसन अली खान को अंदेशा हो रहा है। उसे भी लगने लगा है कि कहीं तेलगी वाला हश्र न हो जाए उसका। वह काफी सहमा हुआ है। उसे लग रहा है कि अब बचना मुश्किल है, क्योंकि उसके रसूख वाले आकाओं ने साथ देना छोड़ कन्नी काटना शुरू कर दिया है। कहते हैं इसी से परेशान होकर हसन अली अब वो कुछ अहम जानकारियां देने के लिए तैयार हो गया है, जिसके आधार पर राजनीतिक गलियारों के सफेदपोशों के गिरेबान तक पहुंचा जा सकता है। यही वजह है कि कइयों (आकाओं) के होश फाख्ता हो गये हैं और वे क्राइसिस मैनेजमेंट में जुट गये हैं। हसन को सलाह के साथ धमकियां भी मिल रही है।

पिछले दिनों सह आरोपी कोलकाता के व्यापारी काशीनाथ तापड़िया से धमकी की बात को वह संवाददाताओं के सामने बता भी चुका हैं। तापडिया मनी लांड्रिंग (धनशोधन) गतिविधियों में हसन अली का कथित सहयोगी रहा है। तापड़िया ने कई राज उगले हैं जो काफी अहम हैं। हसन को तब ही लग गया था कि उसका बच पाना मुश्किल है और जेल की चहारदीवारी ही शायद उसकी नियति है। उसके बाद से ही हसन अली ने साफ-साफ कहना शुरू कर दिया है कि वह सबकी पोल खोल देगा। उसने कई बार मीडिया के सामने कहा है वह असली अपराधियों की पोल खोल देगा, लेकिन उसके राजनीतिक आका उसे ऐसा करने से हमेशा रोकते रहे हैं। लेकिन लगता नहीं कि यह सिलसिला बहुत लंबा चलने वाला है। बात सामने आएगी लेकिन सबसे बड़ा  सवाल यह है कि किस रूप में, क्योंकि लोग एक दशक पुराने नकली स्टांप पेपर घोटाले को भूले नहीं हैं। चारो तरफ से घिरने के बाद स्टांप पेपर घोटाले के मुख्य अभियुक्त अब्दुल करीम तेलगी के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ था, जब उसने अपने आकाओं के बारे में मुंह खोला था। उसने जिसका-जिसका नाम लिया था, मीडिया में खुलासा भी किया गया लेकिन उसका क्या हश्र हुआ यह किसी से छिपा नहीं है।

गौरतलब है कि अब्‍दुल करीम तेलगी ने सितम्‍बर 2006 में नारको टेस्‍ट के दौरान एनसीपी नेता शरद पवार और छगन भुजबल का भी नाम लिया था। स्टॉम्प घोटाला में भुजबल का नाम उछलने के बाद पार्टी ने उन्हें महाराष्‍ट्र के उपमुख्यमंत्री पद से हटाया, जिसके बाद छगन भुजबल करीब 3 सालों तक राजनीतिक अज्ञातवास में रहे थे। कई पुलिस अधिकारियों पर आरोप है कि उन्‍होंने जेल के भीतर से ही तेलगी को फर्जी स्‍टाम्‍प का गोरखधंधा चलाने में मदद की थी। हालांकि लोगों को बहुत कुछ सामने आ पाने का भरोसा न के बराबर है। उन्हें देश के पांच सबसे बडे बोफोर्स, हवाला, स्‍टॉम्‍प, 2जी स्पेक्ट्रम, राष्‍ट्रमंडल खेल घोटाले का हश्र दिख रहा है। छोटी मछलियां पकड़ कर असली गुनाहगारों तक नहीं पहुंचा जा रहा है, जबकि सीधी-सीधी कड़ी जुड़ रही है। लोगों को जन आंदोलन से ही थोड़ी बहुत उम्मीद झलक रही है क्योंकि इन मामलों में साफ हो गया है कि जब तक नेता, बाबू, मंत्री-संतरी और कॉर्पोरेट वर्ल्ड के लोग मिले हैं, उनके नाम का खुलासा नहीं होगा। जन आंदोलन कामयाब हुआ तो और बात होगी लेकिन उसके लिए डगर आसान नहीं है। आंदोलन को पंचर करने की कोशिश लगातार की जा रही है क्योंकि सत्ता की बागडोर संभाले लोगों को लग रहा है कि अगर हवा नहीं निकाली गयी तो उनकी गर्दन फंसनी तो तय है। इसलिए नैतिक-अनैतिक किसी भी तरीके से हवा निकालने में जुटे हुए हैं। हवा निकल गयी तो जैसा कि बड़े लोग तेलगी कांड में बच गये वैसे ही ब्लैकमनी सहित अन्य केस में भी होगा।

जी हां, हसन अली ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की पूछताछ में खुलासा कर दिया है कि उसके खाते में महाराष्ट्र के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों का पैसा जमा है। हसन अली ने ईडी के अफसरों को बताया है कि उसके अकाउंट में जमा हजारों करोड़ रुपए में से एक बड़ा हिस्सा देश के कई बड़े नेताओं और नौकरशाहों का है। अली ने ये पैसे स्विस बैंक और दूसरे अकाउंट्स में जमा करवाए थे। इन बड़े नेताओं में महाराष्ट्र के तीन पूर्व मुख्यमंत्री व कुछ केंद्रीय नेता भी शामिल हैं। कहने वाले तो यहां तक कहते हैं कि हसन अली के कद व रिश्ते का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि मामला प्रकाश में आने और सब कुछ साफ हो जाने के बाद भी राजनीतिक रिश्ते की वजह से वह छुट्टे सांड की तरह घूमता रहा था। उसकी गिरफ्तारी तक का साहस नहीं जुटाया जा पा रहा था। सुप्रीम कोर्ट की कड़ी फटकार के बाद ही केंद्र सरकार हरकत में आयी और उसकी गिरफ्तारी संभव हो पायी। बताया जाता है कि इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के पास क्या कुछ नहीं है। उसने पुणे में हसन अली के यहां छापा मारा था। छापे में एक लैपटॉप पकड़ा गया था जिसमें सत्रह नाम थे। एक नाम पढ़ा जा सकता था अदनान खशोगी का, बाक़ी सोलह नाम कोडेड थे, समझ नहीं आ रहे थे। आईटी अ़फसर थक गए। उन्होंने हाथ खडे़ कर दिये।

स्विट्‌जरलैंड को चिट्ठी लिखी गयी कि इनके नाम बता दीजिए। उनकी तरफ से जवाब आया कि हम ये नाम आपको देने के लिए तैयार हैं, अगर आपके वित्तमंत्री हमें चिट्ठी लिखें। इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने तत्कालीन वित्तमंत्री चिदंबरम से संपर्क किया और उन्होंने तत्काल पत्र लिख भी दिया। उनके पास सत्रह आदमियों की लिस्ट आ गयी लेकिन उस लिस्ट को देखने के बाद मानो उन्हें सांप सूंघ लिया हो। आनाकानी करने लगे क्योंकि उसमें तीन राजनेताओं के भी नाम थे। एक विलासराव देशमुख का नाम था, जो कैबिनेट मंत्री हैं। उसके बाद घोड़े के व्यवसायी हसन अली का नाम आया, जिसके खाते में 100 लाख करोड़ रुपया जमा था। तीसरा नाम अहमद पटेल का है। जी हां, सोनिया जी के राजनीतिक सलाहकार। विलासराव देशमुख के साथ हसन अली से मिलने जाया करते थे। बॉम्बे पुलिस के पास उन तीनों राजनेताओं की वीडियो फुटेज है, जो रात को पुणे में मिलते थे। अब आप हसन अली के तब के कद का अंदाजा तो लगा ही सकते हैं। हां अब जब वह फंस चुके हैं और उनके आका कन्नी काटने लगे है तो फिर उनके हश्र को लेकर कई तरह के सवाल खडे़ किये जा रहे हैं।

गौरतलब है कि पुणे के इस व्यवसायी पर स्विस बैंक में करीब आठ अरब अमेरिकी डॉलर का काला धन जमा करने का आरोप है। लेकिन उसने कबाड़ का धंधा करने की बात कबूल की थी। उसका कहना है कि इस धंधे से उसे सालाना 30 लाख रुपये की कमाई होती है। अब तक हसन अली से टैक्स वसूले जाने का आंकड़ा 40 हजार करोड़ रुपये माना जा रहा था, लेकिन इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने अब इस आंकड़े को संशोधित किया है। अधिकारियों ने अब 71 हजार 845 करोड़ रुपये के टैक्स की मांग की है। कैग की रिपोर्ट के मुताबिक पुणे के घुड़दौड़ कारोबारी का धन 6 सालों में सौ गुना बढ़ गया। हसन अली खान की आय 2001-02 में 528.9 करोड़ थी, महज 6 साल में इसकी संपत्ति की उड़ान सौ गुना से भी अधिक हो गई, जो 54,268.6 करोड़ रूपए तक पहुंच गई। हजारों करोड़ कमाने के बावजूद इसने अभी तक रिटर्न फाइल नहीं की है, कोई भी टैक्स नहीं दिया है।

देश के बड़े पांच घोटाले जिनसे मचा सियासी तूफान :

1. बोफोर्स घोटाला : 1987 में यह बात सामने आई थी कि स्वीडन की हथियार कंपनी बोफोर्स ने भारतीय सेना को तोपें सप्लाई करने का सौदा हथियाने के लिये 80 लाख डालर की दलाली चुकाई थी। उस समय केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी, जिसके प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे। स्वीडन की रेडियो ने सबसे पहले 1987 में इसका खुलासा किया। सीबीआई ने विन चड्ढा, ओट्टावियो क्वात्रोची, पूर्व रक्षा सचिव एसके भटनागर और बोफोर्स के पूर्व प्रमुख मार्टिन अर्बदो के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी।

2. हवाला कांड : 18 लाख अमेरिकी डॉलर की रिश्‍वत से जुड़े इस मामले में देश के प्रमुख राजनेताओं के नाम आने से सियासी गलियारे में हड़कंप मच गया था। इसमें राजनेताओं पर हवाला ब्रोकर जैन बंधुओं के जरिये यह राशि लिए जाने का आरोप था। इस घोटला के आरोपियों में भाजपा के वरिष्‍ठ नेता लाल कृष्‍ण आडवाणी, कांग्रेस नेता विद्याचरण शुक्‍ल, शरद यादव, बलराम जाखड और मदन लाल खुराना सहित कई राजनेताओं और मशहूर हस्तियों का नाम था। इनमें अधिकतर आरोपी सबूतों के अभाव में करीब 12-13 साल पहले ही बरी हो चुके हैं।

3. स्‍टॉम्‍प घोटाला : अब्‍दुल करीम तेलगी 43 हजार करोड़ रुपये से अधिक के फर्जी स्‍टॉम्‍प घोटाले का मुख्‍य अभियुक्‍त है। तेलगी को इस मामले में दस साल की कैद हुई है। सितम्‍बर 2006 में नारको टेस्‍ट के दौरान एनसीपी नेता शरद पवार और छगन भुजबल का भी नाम लिया था। स्टॉम्प घोटाला में भुजबल का नाम उछलने के बाद पार्टी ने उन्हें महाराष्‍ट्र के उपमुख्यमंत्री पद से हटाया जिसके बाद छगन भुजबल करीब 3 सालों तक राजनीतिक अज्ञातवास में रहे थे। कई पुलिस अधिकारियों पर आरोप है कि उन्‍होंने जेल के भीतर से ही तेलगी को फर्जी स्‍टाम्‍प का गोरखधंधा चलाने में मदद की।

4. 2जी घोटाला : संसद में पेश सीएजी रिपोर्ट के मुताबिक यह पूरा घोटाला 1.76 लाख करोड़ रुपये का बताया गया है। आरोप है कि दूरसंचार मंत्रालय ने 2जी स्‍पेक्‍ट्रम की नीलामी के दौरान नियमों को ताक पर रखकर प्रमुख निजी टेलीकॉम कंपनियों को लाइसेंस दिया। ये लाइसेंस 2008 में आवंटित किए गए थे, जिसमें नियमों का खुले तौर पर उल्लंघन किया गया था। हालांकि इस मामले में तत्‍कालीन दूरसंचार मंत्री और डीएमके नेता ए राजा सहित कई अधिकारियों की गिरफ्तारी हुई है लेकिन आशंका व्यक्त की जा रही है कि समय के साथ कही
यह मामला भी कुछ को बलि का बकरा बनाकर रफा-दफा न कर दिया जाए।

5. राष्‍ट्रमंडल खेल घोटाला : नई दिल्‍ली में गत अक्‍टूबर में हुए राष्‍ट्रमंडल खेलों के आयोजन में बड़े पैमाने की आर्थिक अनियमितता की बात सामने आने के बाद सियासी माहौल गरमा गया। इन गड़बडियों की जांच में जुटी सीबीआई ने कांग्रेस नेता और इन खेलों की आयोजन समिति के अध्‍यक्ष सुरेश कलमाड़ी से लंदन में 2009 में हुई क्वींस बेटन रिले के भुगतान और कई कंपनियों को दिए गए करोड़ों रुपये के ठेकों के बारे में पूछताछ की और उसके बाद उनकी गिरफ्तारी भी की गयी है। अभी वह जेल में हैं। इसके अलावा इस मामले में कलमाड़ी के कई करीबी अधिकारियों की गिरफ्तारी भी हुई है। एक अनुमान के मुताबिक राष्‍ट्रमंडल खेलों और इसके आयोजन से जुड़े अन्‍य कार्यों पर हजारों करोड़ रुपये खर्च किए गए, जिसमें अधिकतर धनराशि आयोजन समिति के अधिकारियों के जेब में जाने के आरोप हैं। इन खेलों के दौरान करीब 70-80 हजार करोड़ रुपये के वारे न्‍यारे होने का अनुमान है।

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