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Friday 19 August 2011

सड़क से लेकर संसद तक लोटती-पलटती सरकार

अन्ना के आगे एक बार फिर सरकार बौनी साबित हुई। अन्‍ना की तैयारी के आगे वह पानी भरती नजर आयी। हालांकि अन्ना की गिरफ्तारी तक वह आत्मविश्वास से लवरेज थी,  पर दिन ढलते-ढलते लोटती-पलटती नजर आने लगी। अन्‍ना की गिरफ्तारी के 12 घंटे के अंदर सरकार इतनी असमंजस में पड़  गयी कि उसे अन्ना की रिहाई के आदेश जारी करवाने पडे़,  लेकिन अन्ना ने जेल से बाहर आने से मना कर दिया। कहा- सरकार बिना शर्त अनशन की इजाजत दे तभी बाहर जाएंगे। रात भर वह तिहाड़ परिसर में ही रहे। इधर रही सही कसर बुधवार को संसद सत्र के दौरान निकलती दिखी। सत्तापक्ष पूरी तरह से हथियार डाले दिखा और विपक्ष पूरी तरह से एकजुट। विपक्ष ने खूब खरीखोटी सुनायी।

प्रधानमंत्री ने यह कहकर अपने आत्मविश्वास को जगाने की जरूर कोशिश की कि कोई भी व्यक्ति संसद की सर्वोच्चता को चुनौती नहीं दे सकता। कानून बनाना संसद का काम है किसी और का नहीं। लेकिन विपक्ष ने यह कहकर पीएम को निरुत्‍तर कर दिया कि कौन संसद की सर्वोच्चता को चुनौती दे रहा है? अन्ना हजारे या सिविल सोसाइटी के सदस्य। जहां तक उन्हें पता है कि ये लोग केवल इतना कह रहे हैं कि कमजोर लोकपाल नहीं सशक्त लोकपाल संसद में पेश हो। इस बात को लेकर उनेक प्रतिनिधि सत्तापक्ष व विपक्ष के साथ भी बैठकें कर चुके हैं। फिर आखिर क्यों संसद को गुमराह किया जा रहा है। विपक्ष के इस हमले का सत्तापक्ष के पास कोई सटीक व तर्कसंगत जवाब नहीं था। वह चारो खाने चित्त होती दिखी।

आफ द रिकार्ड यूपीए सरकार की प्रमुख घटक कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं ने भी अन्‍ना प्रकरण को ढंग से हैंडिल करने में चूक की बात मानी और इसका पूरा ठीकरा पार्टी के उन रणनीतिकारों के सिर फोड़ दिया,  जो कल तक पूरे कांफिडेंस के साथ कहते फिर रहे थे कि चिंता न करें, हम पर छोड़ दें। इन रणनीतिकारों  पर विश्वास करने को सबसे बड़ी भूल मान रही है कांग्रेस। अन्ना की गिरफ्तारी वाले दिन कल दिनभर का घटनाक्रम गवाह है कि सरकार के रणनीतिकार किस तरह लगातार फेल होते चले गये। अन्ना के जनआंदोलन को कमतर आंकना उनकी सबसे बड़ी भूल मानी गयी। कहा तो यहां तक जा रहा है कि इन रणनीतिकारों ने पार्टी और सरकार की और छीछालेदर कराने का पूरा इंतजाम कर रखा था,  पर भला कहिए, राहुल गांधी का। उन्होंने हालात को भांपा और तुरंत प्रधानमंत्री से मिलने निकल पडे़। कहते हैं राहुल ने प्रधानमंत्री से मिलकर साफ-साफ शब्दों में कहा कि संदेश ठीक नहीं जा रहा है। हमें बैकफुट पर आ जाना चाहिए।

...कहते हैं राहुल गांधी शुरू से इस तरह की कार्रवाई के पक्ष में नहीं थे और स्वदेश लोटने के बाद उन्होंने इस पर आपत्ति भी जताई थी लेकिन तब उन्हें यह समझाकर शांत कर दिया गया। कहा गया कि सारा बंदोबस्त कर दिया गया है। कहीं से कोई विरोध प्रदर्शन नहीं हो पाएगा। रामदेव प्रकरण का हवाला देकर उन्हें विश्वास में लेने की कोशिश की गयी। इसमें प्रधानमंत्री ने भी महती भूमिका अदा की और कहा कि चूंकि आप देश से बाहर थे इसलिए सारी तैयारियों के बारे में आपको नहीं बताया जा सका। हालांकि सरकार व कांग्रेस के कुछ लोग शुरू से उनके संपर्क में थे और उन्होंने पहले ही इस तरह का अंदेशा व्यक्त कर दिया था। अब ये लोग पार्टी के भीतर लगातार इस बात को उठाकर उन्हें कठघरे में लाने की कोशिश कर रहे हैं। कुल मिलाकर सरकार व कांग्रेस के भीतर भी रस्साकसी शुरू हो गयी है। इसलिए देर सवेर अगर किसी चहेते के पर कतरे जाने की खबर सुनने को मिले तो अचंभित होने की बिल्कुल जरूरत नहीं है।

हालांकि अन्ना आपरेशन के लिए गठित सरकार के ऱणनीतिकारों ने हालात को संभालने के लिए हर संभव प्रयास किया और खूब लोटपोट की, यूटर्न लिया। विपक्ष के कडे़ रुख को भी वे भांप चुके थे क्योंकि उन्हें जिनसे भरोसा मिला था उन्होंने साफ-साफ शब्दों में कह दिया कि अब वह कुछ नहीं कर सकते,  क्योंकि देशभर में धरना-प्रदर्शन शुरू हो चुका है। पार्टी (विपक्ष) हाईकमान की तरफ से लाइन जारी कर दिया गया है। सरकार के रणनीतिकारों के लिए यह सबसे बड़ा झटका था,  क्योंकि उसे आभास हो गया कि सड़क की गूंज अब संसद तक पहुंचने से नहीं रोकी जा सकती। हुआ भी यही, पूरा का पूरा विपक्ष अन्ना की गिरफ्तारी का विरोध करने लगा। सरकार के रणनीतिकारों के हाथ-पांव फूलने लगे। संसद की कार्रवाई कई बार स्थगित करनी पड़ी और जब विपक्ष का रवैया बिल्कुल नहीं बदला तब अगले दिन तक के लिए सदन की कार्रवाई स्थगित कर दी गयी। इसके बाद सरकार के पास मीडिया के समक्ष सफाई देने का ही अवसर शेष रहा। मीडिया भी विमुख न हो जाए इसिलए सूचना व प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी को प्रेस कांफ्रेंस में साथ रखा गया। हालांकि कांफ्रेस पी चिदम्बरम व पीएम के चहेते कपिल सिब्बल को संबोधित करना था,  लेकिन इस दौरान भी खूब सवालों के बौछार हुए और सरकार के नुमाइंदे इससे बचते नजर आए। सरकार को खूब घेरा गया और आखिरकार सरकारी नुमाइंदे आधी-अधूरी बातें कहकर चलते बने।

उधर देशव्यापी प्रदर्शन जारी है। जैसे-जैसे दिन ढलता गया अन्ना के समर्थकों की तादाद लगातार बढ़ रही है। लग रहा मानो देशभर में सड़कों पर लोगों का हुजूम कह रहा हैं कि एक अन्ना नहीं सभी अन्ना हैं गिरफ्तार करो। सच कहें तो इतने व्यापक प्रदर्शन का अंदाजा सरकार के साथ अन्‍ना को भी नहीं था लेकिन अन्ना के समर्थकों ने ऐसा कर दिखाया। परिणाम सामने है। मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी और वामदलों ने भी खूब साथ दिया और अन्ना की गिरफ्तारी का विरोध किया। बीजेपी ने अन्ना की गिरफ्तारी की तुलना इमरजेंसी जैसे हालात से की। इससे भी खूब माहौल सरकार के खिलाफ बना। उधर कहा जा रहा है कि सरकार को इस बात का भी डर हो गया था कि कहीं सुप्रीम कोर्ट स्वत:  संज्ञान लेते हुए सरकार को कड़ी फटकार न लगा दें और उसके बाद अगर अन्ना को रिहा करना पडे़ तो सरकार की स्थिति और हास्यास्पद हो जाएगी।