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Saturday 21 January 2012

क्या आपकी जेब भी कटी है!

नयी दिल्ली। क्या आपको पता है कि रोज ही आपकी जेब कट रही है। जीहां यह एक ऐसी चोरी है जिसके बारे में जानते हुए भी आप कुछ नहीं कर सकते। इसके लिए किसी भी थाने में एफआईआर दर्ज नहीं होती है। यानि कि मजे से अपनी मेहनत की कमाई को गंवाते रहिए। इस देश के करोड़ो लोगो की जेब पर रोज ही डाका पड़ता है लेकिन हैरानी है कि इसके लिए आज तक कोई भी ना तो नियम बना और ना ही कोई ऐसा उपाय हुआ जिससे कि इस चोरी पर लगाम लग सके। क्या आपको पता है कि वो चोर कौन है...वो चोर है आपके जेब में पड़ा हुआ मोबाइल...चौंक गये ना। दरअसल मोबाइल कम्पनियों की चालों में फंस कर रोज ही लाखों लोग अपना पैसा गंवा बैठते है। आपके मोबाइल पर एक कॉल आती और आपके कॉल रिसीव करते ही आपका बैलेंस सफाचट....ऐसा वाकया मेरे साथ भी हो चुका है। मेरे मोबाइल सिम का बैलेंस अचानक एक दिन 50 रुपया कम हो गया। मै परेशान हुआ कस्टमर केयर को फोन लगाने की कोशिश की मगर नहीं लगा। उसके बाद मेरे पास एक मैसेज आया जिसमें कि मेरे कनेक्शन पर म्यूजिक स्टेशन लोड होने की सूचना थी। आगे मैसेज में लिखा था कि इस सर्विस को डिएक्टिवेट करने के लिए फलां टॉलफ्री नम्बर पर कॉल करें। जब मैने उस नम्बर पर काल की तो गाने सुनाई देने लगे और फाइनली मेरा बचा हुआ बैलेंस भी खत्म हो गया। उसके बाद मैने बहुत कोशिश की मगर कस्टमर केयर पर कॉल नहीं हो सका। मैने मनमसोस कर फिर से सिम रिचार्ज कर लिया।
जरा सोचिए एक अनुमान के मुताबिक पूरे देश में इस समय मोबाइल उपभोक्ताओं की संख्या 20 करोड़ को पार कर गयी है। ऐसे में अगर किसी एक कम्पनी के पास एक करोड़ भी उपभोक्ता हों। और वह रोज उनसे एक रुपया काट लेती हो तो सोचने वाली बात है कि एक दिन की उस कम्पनी की कमाई क्या होगी। 30 करोड़ रुपये उस कम्पनी को बिना किसी दिक्कत के उसके एकाउन्ट में हर महीने जाते रहेंगे। और हम आप सर पकड़ कर समझौता करके फिर से रिचार्ज करा लेंगे। अगर आंकड़ों को छोड़ पर सामान्यतया ही इस मामले पर विचार करें । तो माथा चकरा जायेगा। क्योंकि रोजाना ही किसी ना किसी के साथ ऐसा होता है। पढ़े लिखे या जागरुक लोग तो कस्टमर केयर से बात करके या उस कम्पनी के सेन्टर पर सम्पर्क कर के कभी कभार बैलेंस वापस पा भी जाते है लेकिन गांव के उन उपभोक्ताओं की सोचिए जो कि मोबाइल में नम्बर डायल करने और रिसीव करने के अलावा और कुछ जानते ही नहीं है। अमूमन बहुत सारे लोग इस तरह की दिक्कतें होने पर थोड़ा सा परेशान होने के बाद सोचते हैं कि दस बीस रुपये के लिए क्या अपना दिमाग खराब करना, चलों फिर से रिचार्ज करा लेते है। लोगों की इसी मानसिकता का फायदा ये मोबाइल कम्पनियां उठा रही है। अगर कायदे से देखा जाय तो यह एक बहुत बड़े घोटाले की शक्ल में सामने आ सकता है।

मोबाइल आज हर व्यक्ति की अनिवार्य जरुरत बन चुकी है। कुकुरमुत्ते की तरह उगती मोबाइल कम्पनियों के आने से उनकी आपसी प्रतिस्पर्धा भी काफी बढ़ गयी है। ऐसे में कम समय में ज्यादा फायदा कमाने का यह चोखा धन्धा है। यही वजह है कि बड़े बड़े इन्डस्ट्रीयल ग्रुप टेलीकॉम के सेक्टर में एन्ट्री मारने को बेताब है। हाल ही में हुआ टूजी स्पेक्ट्रम घोटाला इसका सबसे बड़ा प्रमाण है। मंदी के दौर में भी सबसे ज्यादा मुनाफा कमाने वाले इस सेक्टर में पैसा लगाना उद्योगपतियों को काफी सेफ लग रहा है। यही वजह है कि टूजी स्पेक्ट्रम के लिए मारामारी मची और इस बीच में दलालों ने खूब चांदी काटी। मामला खुला और अब जांच चल रही है लेकिन इस घोटाले के बाद से यह तो साफ हो गया है कि आज इस सेक्टर की क्रेज और इसमें होने वाला मुनाफा कितना बढ़ चुका है।

मोबाइल कम्पनियों के ओर से कई स्तरों पर फर्जीवाड़ा किया जा रहा है। मोबाइल टॉवर लगवाने से लेकर, कनेक्शन देने और फिर उसमें तमाम प्रकार की सर्विसेज एक्टीवेट करने का सब्जबाग दिखाकर उपभोक्ताओं को ठगा जा रहा है। आप अगर रिचार्ज कराने जा रहे है तो हो सकता है कि उसका बैलेंस आपको ना मिले क्योंकि अगर रिचार्ज कराने के एक घंटे पहले कम्पनी ने अपना स्कीम बदल दिया तो वह पैसा बिना आपसे पूछे किसी सर्विस के रुप में एक्टिवेट हो सकता है। अब आप सेन्टर से लेकर दुकान तक सर खपाते रहिए कोई पूछने वाला नहीं आयेगा। सवाल यह है कि इतना सबकुछ एकदम से खुलेआम होने के बावजूद कोई भी सरकारी एजेंसी या ट्राई इसपर कोई कार्रवाई क्यों नहीं करती । क्या सिर्फ अनचाही कॉल्स रोक देने के नियम बना देने भर से धोखाधड़ी पर लगाम लग जायेगी। मोबाइल जैसे गैजेट में जिस तरह से सुविधाएं बढ़ी है उनके हिसाब से लोगों की जेब भी कट रही है। कॉलर ट्यून, फन जोक्स, थ्री जी, शायरी एलर्ट, म्यूजिक स्टेशन ये सभी सर्विसेज यूं तो बड़ी अट्रेक्टिव लगती है मगर जिसने भी इसे एक्टिवेट कराया उसे सर पकड़ कर रोना पड़ता है। सवाल ये है कि आखिर कब तक इसपर लगाम लगेगी ? साफ है ट्राई खुली आंखो से देखकर भी मक्खी निगल रही है। इसकी जांच होनी जरुरी है। अगर ऐसा हुआ तो निश्चित रुप से देश के बड़े घोटालों में मोबाइल कम्पनियों का ये सर्विसेज घोटाला होगा।

रिश्वत को क़ानूनी मान्यता ?

देश में भ्रष्टाचार पर अंकुश कैसे लगे। क्या आपके पास इसका जवाब है। अगर है तो हमें सुझाएं। हालांकि इसको लेकर कोई आंदोलन खडी करने की बात कर रहा तो कोई कुछ और। लेकिन इस सब के बीच प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के प्रमुख आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु का लिखा एक लेख गौर करने वाला है। उन्होंने अपने लेख में सुझाव दिया है कि अपना काम करवाने के बदले रिश्वत देने वाले को अपराधी नहीं माना जाना चाहिए। रिश्वत देने वाले की बजाए रिश्वत लेने वाले को ही अपराधी ठहराया जाना चाहिए।
सवाल उठता है कि क्या प्रधानमंत्री के सलाहकार का ये सुझाव भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने के लिए है या फिर अंकुश लगाने के लिए है। एक नजर में तो कहीं से भी इस बयान को नकेल कसने वाला नहीं कहा जा सकता पर यहां यह भी बात गौर करने वाली है कि बयान देने वाला कोई राजनेता नहीं है। कुछ सोच-समझकर ही उन्होंने सुझाव दिये होंगे। राजनीतिक पार्टियों के नेताओं की तरह नफा-नुकसान का आकलन कर तो कम से कम उन्होंने इसका जिक्र नहीं किया है।
मुझे भी लगता है कि सरकार को ये नियम बनाना चाहिए कि अगर कोई व्यक्ति अपना काम जल्दी करवाना चाहता है तो उससे कुछ अतिरिक्त शुल्क लिया जाना चाहिए। साथ ही ये वक़्त भी दिया जाना चाहिए कि किस दिन आपका काम हो जाएगा। ये अतिरिक्त शुल्क सरकार के खजाने में जाना चाहिए और देश के विकास में उसका इस्तेमाल होना चाहिए। क्योंकि आजकल लोगों को अपना काम करवाने की हडबडी होती है। लोग रिश्वत देकर अपना काम करवा लेना चाहते हैं। अच्छा ये ही हो कि इस बारे में नियम ही बना दिया जाए ताकि अतिरिक्त शुल्क बिचौलिये के पास नहीं बल्कि सरकार के खजाने में पहुंचे।
हालांकि रिश्वत लेना और देना दोनों अपराध है और तत्काल रेलवे आरक्षण की तर्ज पर अगर यह व्यवस्था लागू कर दी जाए तो इस सवाल पर ही विराम लग जाएगा कि रिश्वत देने वाला या फिर लेने वाला अपराधी है। कोई अपराधी नहीं होगा और काम भी होगा, सरकारी खजाना भी बढेगा। हालांकि द हिंदू अख़बार के वरिष्ठ संपादक पी. साईनाथ ने प्रधानमंत्री के सलाहकार की टिप्पणी पर कडी आपत्ति व्यक्त की है। उनके मुताबिक यह बयान भ्रष्टाचार को लाइसेंस देने जैसा है। उन्होंने सवाल उठाया है कि अगर मोबाईल कंपनियाँ दावा करें कि उन्हें लाइसेंस लेने के लिए रिश्वत देने पर मजबूर किया गया तो क्या उन्हें अपराध मुक्त किया जा सकता है?
उधर भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी का कहना है कि हम लाख कोशिश कर लें लेकिन जबतक नीतियां सही नहीं होंगी कुछ नहीं हो सकता। सरकार की ढुलमुल नीति की वजह से हम घोटालेबाजों से घिर गये हैं।
आडवाणी ने कहा कि केंद्र सरकार ने भ्रष्टाचार के मामलों को कभी एक बार में स्वीकार नहीं किया। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में देशव्यापी दबाव बनने के बाद जेपीसी की मांग स्वीकार की। इसके अलावा भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे ने जो मुहिम छेड़ी है, उसको भी जब देशव्यापी समर्थन मिला तब सरकार लोकपाल विधेयक के लिए तैयार हुई। आडवाणी ने विदेशों के बैंकों में जमा काले धन की वापसी के मुद्दे पर कहा कि इसके लिए कानून बनाने की आवश्यकता नहीं है। देश में पर्याप्त कानून है। इसके लिए सरकार को ठोस कदम उठाए जाने की जरूरत है। राष्ट्रमंडल खेल घोटाला, 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला और आदर्श घोटाला के आरोपियों को सजा मिलनी चाहिए।

बांग्लादेश से आ रही संदिग्धों की खेप


सीमा पर चीनी सैनिकों की बढती गतिविधियों के बीच एक और चौंकाने वाली खबर। यह खबर पडोसी देश बांग्लादेश से है। वहां से भारत में संदिग्धों की खेप पहुंचाने का काम एक बार फिर धडल्ले से शुरू हो गया है। इन्हें बडे शहरों में नहीं बल्कि पौराणिक धार्मिक स्थलों सहित छोटे शहरों में खपाया जा रहा है। और इसे अंजाम देने में मदद कर रहे हैं सीमा पर मानव तस्करी करने वाले दलाल।
यूं अगर देखा जाए तो बांग्लादेशी घुसपैठियों की समस्या कोई नयी समस्या नहीं है। यह इस देश के गठन (1971) के बाद से ही शुरू हो गयी थी लेकिन हाल के दिनों में इनका तरीका बदला है। नजर पर न चढे इसके लिए बडी खेप की बजाय छोटी-छोटी खेप (50-50) का सहारा लिया जा रहा है। इसके अलावा पौराणिक धार्मिक स्थलों सहित छोटे शहरों तक इन्हें पहुंचाया जा रहा है। हाल के दिनों में मथुरा, व्रिंदावन, गोवर्धन, वाराणसी
में इन्हें काफी संख्या में देखा गया है। ये सब यहां कबाड का काम करते है और बांग्ला भाषी होने का की वजह से ये खुद को पश्चिम बंगाल के बताते हैं लेकिन सच्चाई इससे इतर है। अपनी बात को पुष्ट करने के लिए इनके पास पहचान पत्र तक होता है और यह सब इंतजाम देश (भारत) के भीतर सक्रिय दलाल करते है। यह सब कुछ बडे ही सुनियोजित तरीके से हो रहा है। सीमा व देश (भारत) के भीतर सक्रिय दलाल आपस में मिलकर इसे अंजाम जा रहे हैं।
सीमा पर सक्रिय इन दलालों का नेटवर्क काफी तगडा है। ये भारत स्थित दलालों से लगातार संपर्क में हैं और सिग्नल मिलते ही ये खेप की सूची उन तक पहुंचा दी जाती है। उसके बाद सूची के नाम के आधार पर पश्चिम बंगाल का पहचान पत्र बनवाया जाता है ताकि नागरिकता को लेकर सवाल न खडा किया जा सके। पहचान पत्र तैयार होते ही सीमा पर सक्रिय दलाल से खेप की आपूर्ति के लिए कहा जाता है। जानकारी के मुताबिक सीमा पर मानव तस्करी करने वाले दलाल इनलोगों को तीन से पांच हजार में भारत के जलालों को हस्तांतरित कर देते हैं। इतनी ही रकम भारतीय सीमा व बांग्लादेश की सीमा पर तैनात सुरक्षाकर्मियों द्वारा ली जाती है और लगभग इसी कीमत में भारतीय दलाल पूरे ग्रुप का सौदा कर डालते हैं।
इन्हें भारत के विभिन्न शहरों में खपाने के बाद स्थानीय स्तर पर ये संगठन तक बना लेते हैं ताकि जरूरत पडने पर विरोध भी किया जा सके। कल ही जिस तरह से रायपुर के माना बस्ती में बांग्लादेशियों ने जमकर हंगामा किया उससे उनके संगठन की मजबूती का पता चल गया। पुलिस थाने तक का का घेराव किया। दीवार पर लिखे गए आपत्तिजनक नारों से ये बिफर पडे थे। पुलिस के हस्तक्षेप के बाद मामला शांत हुआ। अज्ञात आरोपियों के खिलाफ अपराध कायम किया गया। गया। नारे में उन्हें माना छोड़कर जाने की नसीहत दी गई थी।
यह एक बानंगी है लेकिन हकीकत यही है कि एक बार आ जाने के बाद इन्हें दोबारा वापस भेजना काफी मुश्किल भरा होता है।

शर्मसार करता संबंध....



भ्रष्टाचार के खिलाफ लडाई लडने के लिए तो हम आंदोलन छेड सकते हैं लेकिन घर-परिवार के बीच घटने वाली घटनाओं का क्या करें। ऐसे मामले सामने आ रहे हैं जिससे लगता है कि सामाजिक व्यवस्था चरमरा सी गयी है। क्या शहर क्या गांव हर जगह का कमोबेश वही हाल है। आए दिन वहां घटने वाली घटनाएं भी कम विचलित करने वाली नहीं होती। रिश्ता-नाता, उम्र तक को लोग भूलने लगे हैं। गाजियाबाद और दादरी में घटित दो घटनाओं ने तो एक बार फिर जख्म को हरा कर दिया है और सोचने को मजबूर कर दिया है

गाजियाबाद। यह कोई फिल्मी कहानी नहीं बल्कि सच्ची घटना है जिसके मुताबिक एक महिला बेटे की उम्र के के साथ घर से भाग गई। महिला विजय नगर के राहुल विहार में रहती थी और तीन बच्चों की मां हैं। महिला की उम्र 35 साल है जबकि लडके की उम्र महज 17 साल है। वह 10वीं का स्टूडेंट है। ये दोनों 23 मार्च से घर से भागे हुए हैं और दोनों के परिजन काफी सरगर्मी से तलाश कर रहे हैं।
पति ने अपनी पत्नी के साथ फरार हुए स्टूडेंट के खिलाफ विजय नगर थाने में तहरीर दी हैं, जबकि स्टूडेंट के पिता ने एसएसपी से मिलकर अपने बेटे को बहला-फुसलाकर ले जाने का आरोप महिला पर लगाया हैं। एसएसपी ने बताया कि थानाध्यक्ष को पहले स्टूडेंट की उम्र के बारे में पता करने और फिर कार्रवाई करने के आदेश दिए हैं।
ग्रेटर नोएडा। एक जुआरी जुए में अपनी पत्नी को दांव पर लगाकर हार बैठा। जुए में हारने की बात पता चलने पर नाराज महिला मायके चली गई। अब महिला और उसके मायके वाले रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए दो थानों के बीच चक्कर काट रहे हैं।

मामला दादरी कोतवाली एरिया के खटाना गांव का है। यहां की निवासी राजकली की शादी वर्ष 2005 में ग्रेटर नोएडा के कुलेसरा निवासी कुशलपाल से हुई थी। कुशलपाल नोएडा की एक कंपनी में गाड़ी चलाता है। वह जुआ खेलने का आदी है। राजकली ने बताया कि एक माह पहले वह मायके से खटाना आ गई थी। इसी दौरान उसका पति 6 हजार रुपये और दो मोबाइल फोन हार गया। बाद में उसने राजकली को दांव पर लगा दिया और उसे भी हार गया। जुआ जीतने वालों के प्रेशर में वह 2 अप्रैल को पत्नी को लाने अपने ससुराल पहुंच गया। घर आने पर पड़ोस में रहने वाली महिला ने उसे जुए में हारने की जानकारी दी। कुछ देर बाद जुआ जीतने वाले लोग उसके घर पहुंच गए। लोगों को देख महिला घर के पीछे वाले गेट से निकलकर मायके आ गई।

परिजनों ने इसकी शिकायत सूरजपुर कोतवाली में की, लेकिन पुलिस ने जारचा कोतवाली का मामला बताकर कार्रवाई करने से इनकार कर दिया। उधर, जारचा कोतवाली पुलिस ने मामला सूरजपुर का बताकर पल्ला झाड लिया। तभी से पीड़ित पुलिस के चक्कर काट रहे हैं। अभी मामले की रिपोर्ट दर्ज नहीं हुई है। एसपी देहात राकेश कुमार जौली के मुताबिक मामले की जांच की जा रही है। जल्द ही मामले की रिपोर्ट दर्ज कर आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

बंटबारे से बदलेगी तस्वीर !


मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने क्या दांव खेला है। मान गये मैडम ! एमसीडी को एक-दो नहीं तीन-तीन टुकडे में बांटकर सवेँसवाँ बनने का इससे बेहतर और कोई तरीका हो ही नही सकता। अभी वहां भाजपा का शासन है और दिल्ली विधानसभा में लगातार तीन बार से काबिज व चुनाव जीतती आ रही कांग्रेस की मुख्यमंत्री को यह बात शुरू से ख़टकती रही। दोनों के बीच शह-मात का खेल खेला जाता रहा और जैसे ही चुनाव का समय नजदीक आता दिखा उनकी तरफ से यह दांव खेल दिया गया। अगले साल एमसीडी चुनाव होने हैं।
मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने दिल्ली की कैबिनेट में एमसीडी को तीन टुक़डे में बांटने के प्रस्ताव को हरी झंडी देकर अपनी मंशा स्पष्ट कर दी। प्रस्ताव को इस तरह से तैयार किया गया है कि सुपर सीएम कहलवाने में कोई अडचन न आए। सबकुछ अपने हाथ में रखने का पूरा प्रबंध कर रखा है। प्रस्ताव में एमसीडी को तीन टुकडे में बांटकर तीन-तीन मेयर व कमिश्नर का प्रावधान किया गया है। इन सबों पर नजर रखने के लिए काउंसिल का गठन किया जाएगा जिसकी मुखिया खुद मुख्यमंत्री होंगी। मामलों की स्क्रीनिंग का पूरा ख्याल रखा गया है और इसीलिए काउंसिल के अलावा एमसीडी की निगरानी के लिए मंत्री स्तर पर कमिटी का भी प्रावधान किया गया है। इसके अलावा सरकारएमसीडी की कार्यप्रणाली को सुचारु चलाने के लिए एक अलग से विभाग भी बनाएगी।
इस बार तो पक्का इंतजाम किया गया है जिसके तहत कोई गुंजाईश ही नहीं छोडी गयी है। यानि नतीजा कुछ भी हो कमान मुख्यमंत्री के ही हाथ में रहेगी। मुख्यमंत्री ने इस आशय के प्रस्ताव को अंतिम मुहर लगाने के लिए गहमंत्रालय के पास भेज दिया है और वहां से हरी झंडी मिलते ही अधिसूचना जारी कर दी जाएगी। हालांकि विपक्ष इसका पुरजोर विरोध कर रहा है। विपक्ष गँहमंत्रालय जाने की बात कर रहा है लेकिन अब देखना यह है कि केंद्र में सत्तासीन कांग्रेस के गँहमंत्री उनकी बातों को तवज्जोह देते भी हैं या नहीं।

मीडिया और मध्यमवर्ग…



नयी दिल्ली, 21 अप्रैल। मीडिया में भ्रष्टाचार सुनने में कुछ अजीब लग सकता है । खासकर उनलोंगो को जो कि पत्रकारिता को अलग चश्में से देखते हैं। ये ऐसे लोग हैं जो  देश दुनिया की तमाम खबरों के लिए हर सुबह अखबार पलटते हैं औऱ शाम को मौका मिलने पर प्राइम टाइम की खबरे देख लेते हैं। बाकी उन खबरों के पीछे कौन है उनका लिखने वाला कौन है इस बात से उन्हे कोई मतलब नहीं क्योंकि ये हमारे देश के बहुसंख्यक मध्यमवर्गीय समाज से आते हैं। जिनकों खबर से बस खुद के प्रभावित होने तक ही सरोकार होता है/ इससे ज्यादा अथवा कम से उन्हे कोई मतलब नहीं होता । देश का ऐसा वर्ग जो कि सुबह से शाम तक आजीविका की चिन्ता में काट देता और बाकी समय अपने पाल के भविष्यनिधि के लिए। बाकी दुनिया में कहां परमाणु बम फट रहा है और कहां युद्ध होने की संभावना है इसका मतलब उसके लिए एक चाय की प्याली खत्म होने भर का होता है । अपने शैशव काल से ही मीडिया ने इस वर्ग को प्रभावित करने की तमाम चेष्ठाएं की, उनके मनमस्तिष्क में घर करने के लिए लाखों जतन किये । अखबारों नें सप्लिमेन्ट निकालें। चैनलों नें स्पेशल न्यूज के नाम पर बुलेटिन। लेकिन यह वर्ग अप्रभावित ही रहा। मगर इधर कुछ सालों से हालात काफी बदले हैं। टीवी के आने के बाद से खबरों को रोचक बनाने की परम्परा जो शुरु हुई अब खतरनाक हद को पार कर रही है। अब ड्राइंगरुम में होने वाली चर्चाओं में 2012 में होने वाली संभावित प्रलय की भी चर्चा शामिल हो गयी है । अब नास्त्रेदमस की आत्मा को कौन बताने जाये कि भइया तुम्हारे देश के लोगों ने तुम्हे भले ही प्रसिद्धि नहीं दी मगर भारतीय मीडिया तुम्हे ज्योतिष का सिरमौर बताने पर तुली है। औऱ अक्सर चैनलों के एमसीआर सेक्शन में वो टेप प्रकट हो जाती है जिसमें कि धरती के तबाह होने के पैकेज बने हुए है।
आपको शायद यह लग सकता है कि मैं विषयेतर हो रहा हूं। लेकिन उपर की सारी बातों की चर्चा इसलिए की गयी ताकि परिवर्तनों की बात और उससे पड़ने वाले प्रभावों की बात आसानी से समझ में आ सके । वस्तुतः यह सारा खेल अधिक से अधिक टीआरपी और विज्ञापन से जुड़ा हुआ है । करोड़ो के इस वारे न्यारे के बीच आम दर्शको को समझ में नहीं आता कि कौन खबर पुरानी है और कौन नई। या फिर किस खबर को किस प्रसंग से बनाया गया है। आम लोगों को कनफ्यूज कर के पैसा बनाना अब आ गया है।लिहाजा चैनलों की भीड़ बढ़ी है , मगर दर्शक तो वहीं हैं।हां यह जरुर है कि ब्रेक के टाइम बटन दबाने की परम्परा महानगरों तक ही सीमित नहीं बल्कि डीटीएच की मेहरबानी से गांवो तक पहुंच चुकी है। उपभोक्ताओं के पास विकल्पों की भरमार जरुर है मगर कन्टेन्ट की नहीं क्योंकि आखिरकार नींव तो एक ही है।
देश में इलेक्ट्रानिक मीडिया अभी अपनी किशोरावस्था को प्राप्त कर रहा है । समाज में एक आम धारणा है कि किशोरावस्था बड़ी खतरनाक उम्र है , इस लिहाज से यह बात देश के टीवी चैनलों पर एकदम सटीक बैठ रही है। लगातार बढ़ रही चैनलों की संख्या और फिर बन्द होते चैनल ..एक तरफ रोजगार का बाजार तो वहीं चुपके से बेरोजगार होते सैकड़ों पत्रकार । पंजाब हरियाना में पिछले पांच सालों का रिकार्ड (अनआफिशियली) एक बेबसाइट पर देखा तो माथा चकरा गया । पांच साल में बीस न्यूज चैनल खुले, जिनमें 16 के शटर डाउन... चार में से तीन बिके और एक ने राज्य छोड़ दिया। मतलब साफ है चुनाव के विज्ञापनों की मोटी कमाई के लालच में दुकान खोली चुनाव के छ महीने पहले से छ महीने बाद तक चलाया फिर किस्सा खतम। मालिक का काला, सफेद हुआ औऱ कुछ अतिरिक्त भी बैंक अकाउन्ट में और फिर छंटनी की प्रक्रिया के नाम पर धीरे धीरे दुकान बढ़ाने की तैयारी।
आजकल बिहार में मीडिया का बड़ा बूम आया हुआ है। साल भर पहले से मैने गिनना चालू कर दिया था। लेकिन बाद में गिनने में तकलीफ होने लगी लिहाजा यह कसरत बन्द कर दी । हाल फिलहाल बिहार झारखण्ड आधारित चैनलों की संख्या दर्जन को पार कर गयी है और दो चार, आने की तैयारी में हैं। एक बड़े फिल्मकार नें जो परम्परा शुरु की उसके बाद से बिहार और झारखण्ड तो पत्रकारों के लिए स्वर्ग हो गया । सबके अपने अपने दावे, और सबकी अपनी अपनी टीआरपी रेटिंग। इन्टरनेट पर प्रायोजित खबरे पढ़ते पढते दिमाग भन्ना गया है। क्योंकि एक ही दिन, एक ही समय में तीन चैनलों को टीआरपी में नम्बर वन की रेटिंग कैसे मिल सकती है।
ये सारे सवाल मीडिया के भीतर हो रहे घटनाक्रमो के लिहाज से बताने के लिए काफी है पत्रकारिता में हाल फिलहाल कुछ भी अच्छा नहीं चल रहा है। चाहे वो कन्टेन्ट के स्तर पर वैचारिक बलात्कार की परम्परा हो या फिर काले को सफेद बनाने के लिए मीडिया मंडियो मे लगती बोली के साथ ही टीवी के पटरी व्यवसाय की शुरुआत। यह दोनों स्थितियां किसी भी हाल में कत्तई शुभ नहीं है। लंदन के कुख्यात पपराजी भी डायना प्रकरण के बाद सुधर गये...मगर भारतीय पपराजियों को आखिर किस डायना की मौत का इन्तजार है।
दरअसल कहानी यहां कुछ और है। ये कहानी विशुद्ध रुप से भारतीय मानसिकता के अनुरुप है ..यानि कि शार्टकट प्रणाली। जरा गौर करें क्या आज के बीस साल पहले पत्रकार बनने के लिए किसी खास डिग्री की जरुरत होती थी ? लेकिन चैनलों की भीड़ नें इस पेशे को भी बाजारु बना ही दिया। और बाजार में नैतिकता नहीं सिर्फ नफा औऱ नुकसान की बाते होती है। गली गली में खुले मीडिया संस्थान औऱ हर महानगर में सिटी से लेकर नेशनल टीवी के व्यवसाय ने रोजगार के लिहाज से इस क्षेत्र को भले ही बेहतर बनाय़ा हो मगर पत्रकारिता के लिहाज से नहीं। कुछ चैनलों को छोड़ दिया जाये तो टीवी पर राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों पर बहस करने वाले चेहरे भी इतने परिपक्व नहीं होते जिनकों दर्शक गंभीरता से सुन सके। इस मामले में क्षेत्रीय लबादा ओढ़े तथाकथित नेशनल चैनलों का हाल सबसे बुरा है ।इसके अलावा अब सुन्दर चेहरे पत्रकारिता की अनिवार्य शर्त हो चुके है। टीवी को अब इंटेलेक्चुअल नहीं बल्कि मॉडल चाहिए।अखबार को पत्रकार नहीं विज्ञापन एजेन्ट चाहिए।अब सेवा नहीं होती , क्योंकि बाजार ही रहनुमा है , बाजार ही आखिरी शर्त है । देश का मीडिया एक ऐसे संक्रमण काल से गुजर रहा है जिसके बारे में भाषणबाजी तो बहुत होती है मगर कदम बढाने की शुरुआत कोई नहीं करता। क्योकि हर हाथ मजबूर है। रोटी की चिन्ता सबको है । महीने में मोटी पगार पाने वाले को भी औऱ दफ्तर दफ्तर घूम के अपना आर्टिकल छपवाने वाले को भी। जीवन स्तर अलग अलग भले हो मगर सबकी अपनी चिन्ताएं है। अब जेहनी तौर पर समाज का दर्जा दूसरा है। इसीलिए शोषण सहते है । और शोषण कराने के लिए आगे खड़े रहते है । क्या करे दूसरा रास्ता भी तो नहीं है।मगर इस बीच से भी कभी कभी कुछ आवाजे उठती जरुर है। इन सारी विसंगतियों के बीच एक बात और भी जानना ज्यादा जरुरी है कि देश के मध्यमवर्ग ने भी सोचना शुरु कर दिया है । अब वह प्रलय की खबरों से चिन्तित नहीं होता बल्कि हंसता है। औऱ आपस में मजाक करता है। गंभीर खबरे भी मजाक बन कर रह जाती है । ऐसे में यह खतरे की घण्टी से उन चैनल मालिकों और संचालको के लिए जिन्होने जनता की नब्ज पकड़ने के नाम पर यह डर का व्यापार शुरु किया मगर खामियाजा पूरी बिरादरी को भुगतना पड़ रहा है। अब छोटे चैनलो के सामने दिक्कत ये है कि नया क्या करें। बड़े के सामने दिक्कत है कि पुरानी छवि से कैसे उबरे । इस उठापटक में दर्शकों की उदासीनता पत्रकारिता के बाजार का भी बेड़ा गर्क कर रही है । लेकिन हां इन सबके बीच में एक वर्ग जो मजे में है वह है काले को सफेद बनाने वाला वर्ग, क्योंकि उसकी तो चांदी है। और वह एक पवित्र पेशे की आड़ में अपने घर में दीवाली मना रहा है

Thursday 19 January 2012

...कहीं तेलगी वाला हाल न हो जाए हसन अली का

क्या हसन अली बीमार है? या फिर बीमारी का बहाना कर रहा है। उसके वकील की मानें तो उसे लकवा (पक्षाघात) मार दिया है। पर जेल प्रशासन इसे अफवाह बताकर खारिज कर रहा है। सच्चाई क्या है यह तो सही जांच से ही पता चलेगा लेकिन इस सब के बीच इससे जुड़ी कुछ जानकारियां चौंकाने वाली हैं। मसलन उसे अपने किये पर पछतावा है। वह रोज-रोज की सुनवाई से आजिज आ चुका है। वह सब कुछ बताने को तैयार है। हालांकि उसका वकील ऐसा करने से मना कर रहा है। लेकिन इसके बावजूद वह खुद को रोक नहीं पा रहा है। पुणे जेल सूत्रों के मुताबिक हसन अली खुलासा करने के लिए बेताब है।

वह अपने को बिल्कुल अकेला महसूस कर रहा है। सिर पर से बोझ हल्का करने की बात उसने करनी शुरू कर दी है। उसने इस बाबत धमकी भी दे दी है। कहते हैं कि इसके बाद से ही उसके आकाओं (सफेदपोश) की परेशानी बढ़ गयी है। वे लगातार उसके पास धैर्य न खोने का मैसेज भिजवा रहे हैं। उससे कहा जा रहा है कि सब्र रखें समय के साथ सब कुछ ठीक-ठाक हो जाएगा। कहते हैं बीमारी के आधार पर जमानत की बात हसन के आकाओं की सलाह पर ही किया गया है। इसे वकील के जरिये पहले फ्लोट किया गया है। याद रहे कि कुछ दिन पहले भी उसे हाईकोर्ट से जमानत मिल गयी थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी आपत्ति के साथ इस पर रोक लगा दी थी। कहा जा रहा है कि नोट के बदले वोट मामले में गिरफ्तार राज्यसभा सांसद अमर सिंह की बीमारी के आधार पर हुई रिहाई के बाद ही हसन के आकाओं ने उसकी बीमारी की बात वकील के जरिये उठायी है। कोशिश जारी है और उसमें सफलता मिल गयी तो ठीक नहीं तो एक राजनीतिक भूचाल के लिए तैयार रहें। हालांकि इसके साथ-साथ एक बात की आशंका भी व्यक्त की जा रही है। कहा जा रहा है कि कहीं तेलगी वाला हश्र न हो जाए हसन अली का।

शायद आपको याद हो नकली स्टांप पेपर घोटाले के मुख्य अभियुक्त अब्दुल करीम तेलगी का नाम। कोई बहुत पहले का नहीं बल्कि एक दशक (2001) पुराना मामला है। तब 43 हजार करोड़ रुपये से अधिक के फर्जी स्‍टॉम्‍प घोटाले को लेकर खूब बावेला मचा था। तेलगी ने गिरफ्तारी के बाद कइयों की पोल खोली भी थी, लेकिन उनका कुछ नहीं बिगड़ा। हां, तेलगी को जरूरत जेल की हवा खानी पड़ रही है। अब ऐसा ही कुछ ब्लैक मनी के मामले में गिरफ्तार हसन अली खान को अंदेशा हो रहा है। उसे भी लगने लगा है कि कहीं तेलगी वाला हश्र न हो जाए उसका। वह काफी सहमा हुआ है। उसे लग रहा है कि अब बचना मुश्किल है, क्योंकि उसके रसूख वाले आकाओं ने साथ देना छोड़ कन्नी काटना शुरू कर दिया है। कहते हैं इसी से परेशान होकर हसन अली अब वो कुछ अहम जानकारियां देने के लिए तैयार हो गया है, जिसके आधार पर राजनीतिक गलियारों के सफेदपोशों के गिरेबान तक पहुंचा जा सकता है। यही वजह है कि कइयों (आकाओं) के होश फाख्ता हो गये हैं और वे क्राइसिस मैनेजमेंट में जुट गये हैं। हसन को सलाह के साथ धमकियां भी मिल रही है।

पिछले दिनों सह आरोपी कोलकाता के व्यापारी काशीनाथ तापड़िया से धमकी की बात को वह संवाददाताओं के सामने बता भी चुका हैं। तापडिया मनी लांड्रिंग (धनशोधन) गतिविधियों में हसन अली का कथित सहयोगी रहा है। तापड़िया ने कई राज उगले हैं जो काफी अहम हैं। हसन को तब ही लग गया था कि उसका बच पाना मुश्किल है और जेल की चहारदीवारी ही शायद उसकी नियति है। उसके बाद से ही हसन अली ने साफ-साफ कहना शुरू कर दिया है कि वह सबकी पोल खोल देगा। उसने कई बार मीडिया के सामने कहा है वह असली अपराधियों की पोल खोल देगा, लेकिन उसके राजनीतिक आका उसे ऐसा करने से हमेशा रोकते रहे हैं। लेकिन लगता नहीं कि यह सिलसिला बहुत लंबा चलने वाला है। बात सामने आएगी लेकिन सबसे बड़ा  सवाल यह है कि किस रूप में, क्योंकि लोग एक दशक पुराने नकली स्टांप पेपर घोटाले को भूले नहीं हैं। चारो तरफ से घिरने के बाद स्टांप पेपर घोटाले के मुख्य अभियुक्त अब्दुल करीम तेलगी के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ था, जब उसने अपने आकाओं के बारे में मुंह खोला था। उसने जिसका-जिसका नाम लिया था, मीडिया में खुलासा भी किया गया लेकिन उसका क्या हश्र हुआ यह किसी से छिपा नहीं है।

गौरतलब है कि अब्‍दुल करीम तेलगी ने सितम्‍बर 2006 में नारको टेस्‍ट के दौरान एनसीपी नेता शरद पवार और छगन भुजबल का भी नाम लिया था। स्टॉम्प घोटाला में भुजबल का नाम उछलने के बाद पार्टी ने उन्हें महाराष्‍ट्र के उपमुख्यमंत्री पद से हटाया, जिसके बाद छगन भुजबल करीब 3 सालों तक राजनीतिक अज्ञातवास में रहे थे। कई पुलिस अधिकारियों पर आरोप है कि उन्‍होंने जेल के भीतर से ही तेलगी को फर्जी स्‍टाम्‍प का गोरखधंधा चलाने में मदद की थी। हालांकि लोगों को बहुत कुछ सामने आ पाने का भरोसा न के बराबर है। उन्हें देश के पांच सबसे बडे बोफोर्स, हवाला, स्‍टॉम्‍प, 2जी स्पेक्ट्रम, राष्‍ट्रमंडल खेल घोटाले का हश्र दिख रहा है। छोटी मछलियां पकड़ कर असली गुनाहगारों तक नहीं पहुंचा जा रहा है, जबकि सीधी-सीधी कड़ी जुड़ रही है। लोगों को जन आंदोलन से ही थोड़ी बहुत उम्मीद झलक रही है क्योंकि इन मामलों में साफ हो गया है कि जब तक नेता, बाबू, मंत्री-संतरी और कॉर्पोरेट वर्ल्ड के लोग मिले हैं, उनके नाम का खुलासा नहीं होगा। जन आंदोलन कामयाब हुआ तो और बात होगी लेकिन उसके लिए डगर आसान नहीं है। आंदोलन को पंचर करने की कोशिश लगातार की जा रही है क्योंकि सत्ता की बागडोर संभाले लोगों को लग रहा है कि अगर हवा नहीं निकाली गयी तो उनकी गर्दन फंसनी तो तय है। इसलिए नैतिक-अनैतिक किसी भी तरीके से हवा निकालने में जुटे हुए हैं। हवा निकल गयी तो जैसा कि बड़े लोग तेलगी कांड में बच गये वैसे ही ब्लैकमनी सहित अन्य केस में भी होगा।

जी हां, हसन अली ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की पूछताछ में खुलासा कर दिया है कि उसके खाते में महाराष्ट्र के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों का पैसा जमा है। हसन अली ने ईडी के अफसरों को बताया है कि उसके अकाउंट में जमा हजारों करोड़ रुपए में से एक बड़ा हिस्सा देश के कई बड़े नेताओं और नौकरशाहों का है। अली ने ये पैसे स्विस बैंक और दूसरे अकाउंट्स में जमा करवाए थे। इन बड़े नेताओं में महाराष्ट्र के तीन पूर्व मुख्यमंत्री व कुछ केंद्रीय नेता भी शामिल हैं। कहने वाले तो यहां तक कहते हैं कि हसन अली के कद व रिश्ते का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि मामला प्रकाश में आने और सब कुछ साफ हो जाने के बाद भी राजनीतिक रिश्ते की वजह से वह छुट्टे सांड की तरह घूमता रहा था। उसकी गिरफ्तारी तक का साहस नहीं जुटाया जा पा रहा था। सुप्रीम कोर्ट की कड़ी फटकार के बाद ही केंद्र सरकार हरकत में आयी और उसकी गिरफ्तारी संभव हो पायी। बताया जाता है कि इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के पास क्या कुछ नहीं है। उसने पुणे में हसन अली के यहां छापा मारा था। छापे में एक लैपटॉप पकड़ा गया था जिसमें सत्रह नाम थे। एक नाम पढ़ा जा सकता था अदनान खशोगी का, बाक़ी सोलह नाम कोडेड थे, समझ नहीं आ रहे थे। आईटी अ़फसर थक गए। उन्होंने हाथ खडे़ कर दिये।

स्विट्‌जरलैंड को चिट्ठी लिखी गयी कि इनके नाम बता दीजिए। उनकी तरफ से जवाब आया कि हम ये नाम आपको देने के लिए तैयार हैं, अगर आपके वित्तमंत्री हमें चिट्ठी लिखें। इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने तत्कालीन वित्तमंत्री चिदंबरम से संपर्क किया और उन्होंने तत्काल पत्र लिख भी दिया। उनके पास सत्रह आदमियों की लिस्ट आ गयी लेकिन उस लिस्ट को देखने के बाद मानो उन्हें सांप सूंघ लिया हो। आनाकानी करने लगे क्योंकि उसमें तीन राजनेताओं के भी नाम थे। एक विलासराव देशमुख का नाम था, जो कैबिनेट मंत्री हैं। उसके बाद घोड़े के व्यवसायी हसन अली का नाम आया, जिसके खाते में 100 लाख करोड़ रुपया जमा था। तीसरा नाम अहमद पटेल का है। जी हां, सोनिया जी के राजनीतिक सलाहकार। विलासराव देशमुख के साथ हसन अली से मिलने जाया करते थे। बॉम्बे पुलिस के पास उन तीनों राजनेताओं की वीडियो फुटेज है, जो रात को पुणे में मिलते थे। अब आप हसन अली के तब के कद का अंदाजा तो लगा ही सकते हैं। हां अब जब वह फंस चुके हैं और उनके आका कन्नी काटने लगे है तो फिर उनके हश्र को लेकर कई तरह के सवाल खडे़ किये जा रहे हैं।

गौरतलब है कि पुणे के इस व्यवसायी पर स्विस बैंक में करीब आठ अरब अमेरिकी डॉलर का काला धन जमा करने का आरोप है। लेकिन उसने कबाड़ का धंधा करने की बात कबूल की थी। उसका कहना है कि इस धंधे से उसे सालाना 30 लाख रुपये की कमाई होती है। अब तक हसन अली से टैक्स वसूले जाने का आंकड़ा 40 हजार करोड़ रुपये माना जा रहा था, लेकिन इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने अब इस आंकड़े को संशोधित किया है। अधिकारियों ने अब 71 हजार 845 करोड़ रुपये के टैक्स की मांग की है। कैग की रिपोर्ट के मुताबिक पुणे के घुड़दौड़ कारोबारी का धन 6 सालों में सौ गुना बढ़ गया। हसन अली खान की आय 2001-02 में 528.9 करोड़ थी, महज 6 साल में इसकी संपत्ति की उड़ान सौ गुना से भी अधिक हो गई, जो 54,268.6 करोड़ रूपए तक पहुंच गई। हजारों करोड़ कमाने के बावजूद इसने अभी तक रिटर्न फाइल नहीं की है, कोई भी टैक्स नहीं दिया है।

देश के बड़े पांच घोटाले जिनसे मचा सियासी तूफान :

1. बोफोर्स घोटाला : 1987 में यह बात सामने आई थी कि स्वीडन की हथियार कंपनी बोफोर्स ने भारतीय सेना को तोपें सप्लाई करने का सौदा हथियाने के लिये 80 लाख डालर की दलाली चुकाई थी। उस समय केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी, जिसके प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे। स्वीडन की रेडियो ने सबसे पहले 1987 में इसका खुलासा किया। सीबीआई ने विन चड्ढा, ओट्टावियो क्वात्रोची, पूर्व रक्षा सचिव एसके भटनागर और बोफोर्स के पूर्व प्रमुख मार्टिन अर्बदो के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी।

2. हवाला कांड : 18 लाख अमेरिकी डॉलर की रिश्‍वत से जुड़े इस मामले में देश के प्रमुख राजनेताओं के नाम आने से सियासी गलियारे में हड़कंप मच गया था। इसमें राजनेताओं पर हवाला ब्रोकर जैन बंधुओं के जरिये यह राशि लिए जाने का आरोप था। इस घोटला के आरोपियों में भाजपा के वरिष्‍ठ नेता लाल कृष्‍ण आडवाणी, कांग्रेस नेता विद्याचरण शुक्‍ल, शरद यादव, बलराम जाखड और मदन लाल खुराना सहित कई राजनेताओं और मशहूर हस्तियों का नाम था। इनमें अधिकतर आरोपी सबूतों के अभाव में करीब 12-13 साल पहले ही बरी हो चुके हैं।

3. स्‍टॉम्‍प घोटाला : अब्‍दुल करीम तेलगी 43 हजार करोड़ रुपये से अधिक के फर्जी स्‍टॉम्‍प घोटाले का मुख्‍य अभियुक्‍त है। तेलगी को इस मामले में दस साल की कैद हुई है। सितम्‍बर 2006 में नारको टेस्‍ट के दौरान एनसीपी नेता शरद पवार और छगन भुजबल का भी नाम लिया था। स्टॉम्प घोटाला में भुजबल का नाम उछलने के बाद पार्टी ने उन्हें महाराष्‍ट्र के उपमुख्यमंत्री पद से हटाया जिसके बाद छगन भुजबल करीब 3 सालों तक राजनीतिक अज्ञातवास में रहे थे। कई पुलिस अधिकारियों पर आरोप है कि उन्‍होंने जेल के भीतर से ही तेलगी को फर्जी स्‍टाम्‍प का गोरखधंधा चलाने में मदद की।

4. 2जी घोटाला : संसद में पेश सीएजी रिपोर्ट के मुताबिक यह पूरा घोटाला 1.76 लाख करोड़ रुपये का बताया गया है। आरोप है कि दूरसंचार मंत्रालय ने 2जी स्‍पेक्‍ट्रम की नीलामी के दौरान नियमों को ताक पर रखकर प्रमुख निजी टेलीकॉम कंपनियों को लाइसेंस दिया। ये लाइसेंस 2008 में आवंटित किए गए थे, जिसमें नियमों का खुले तौर पर उल्लंघन किया गया था। हालांकि इस मामले में तत्‍कालीन दूरसंचार मंत्री और डीएमके नेता ए राजा सहित कई अधिकारियों की गिरफ्तारी हुई है लेकिन आशंका व्यक्त की जा रही है कि समय के साथ कही
यह मामला भी कुछ को बलि का बकरा बनाकर रफा-दफा न कर दिया जाए।

5. राष्‍ट्रमंडल खेल घोटाला : नई दिल्‍ली में गत अक्‍टूबर में हुए राष्‍ट्रमंडल खेलों के आयोजन में बड़े पैमाने की आर्थिक अनियमितता की बात सामने आने के बाद सियासी माहौल गरमा गया। इन गड़बडियों की जांच में जुटी सीबीआई ने कांग्रेस नेता और इन खेलों की आयोजन समिति के अध्‍यक्ष सुरेश कलमाड़ी से लंदन में 2009 में हुई क्वींस बेटन रिले के भुगतान और कई कंपनियों को दिए गए करोड़ों रुपये के ठेकों के बारे में पूछताछ की और उसके बाद उनकी गिरफ्तारी भी की गयी है। अभी वह जेल में हैं। इसके अलावा इस मामले में कलमाड़ी के कई करीबी अधिकारियों की गिरफ्तारी भी हुई है। एक अनुमान के मुताबिक राष्‍ट्रमंडल खेलों और इसके आयोजन से जुड़े अन्‍य कार्यों पर हजारों करोड़ रुपये खर्च किए गए, जिसमें अधिकतर धनराशि आयोजन समिति के अधिकारियों के जेब में जाने के आरोप हैं। इन खेलों के दौरान करीब 70-80 हजार करोड़ रुपये के वारे न्‍यारे होने का अनुमान है।